इस से पहले के अध्यायों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के उद्देश्यों, प्रोग्रामों और नतीजों के बारे में उल्लेख हो चुका है, इस आखरी हिस्से में उनकी हुकूमत की विशेषताओं के बारे में उल्लेख करते हैं जैसे हुकूमत की सीमाएं, हुकूमत का केन्द्र, हुकूमत की मुद्दत, कर्मचारियों के काम के तरीक़े और हुकूमत के महान रहबर हज़रत इमाम महदी अ. स. की सीरत आदि।
हुकूमत की सीमाएं और उसका केन्द्र
इस में कोई शक नहीं है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत एक विश्वव्यापी हुकूमत होगी। क्योंकि पूरी इंसानियत के मौऊद और इंसानों की हर तमन्ना को पूरा करने वाले हैं, इस लिए उनकी हुकूमत की छत्र छाया में समाज में जो अच्छाइयां और नेकियां पैदा होंगी वह पूरी दुनिया में फैल जायेंगी। यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिसके बारे में अनेकों रिवायतें गवाह हैं, हम यहां पर उनमें से कुछ रिवायतों की तरफ़ इशारा कर रहे हैं :
अ. वह अनेकों रिवायतें जिन में यह बयान हुआ है कि इमाम महदी (अ. स.) ज़मीन को अदल व इन्साफ़ से भर देंगे, जिस तरह से वह ज़ुल्म व जौर से भरी होगी। क्योंकि ज़मीन की सार्थकता पूरी दुनिया पर है और ज़मीन के अर्थ को ज़मीन के किसी एक हिस्से तक सीमित करने के लिए हमारे पास कोई दलील नहीं है।
ब. वह रिवायतें जिन में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के विभिन्न इलाकों पर क़ाबिज़ होने की खबर दी गई है, उन इलाक़ों की व्यापकता और महत्ता के पेशे नज़र इस बात की पुष्टी होती है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) पूरी दुनिया पर मुसल्लत हो जायेंगे। अर्थात कुछ शहरो और देशों का नाम मिसाल और नमूने के तौर पर लिया गया है और इन रिवायतों को समझने वालों की समझने की शक्ति को मद्दे नज़र रखा गया है।
विभिन्न रिवायतों में रोम, चीन, देलम या देलम के पहाड़, तुर्क, सिन्ध, हिन्द, क़ुस्तुन्तुनिया, काबुल शाह और खिज़र का नाम आया है कि इन पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का कब्ज़ा होगा और इमाम (अ. स.) उपरोक्त वर्णित इन तमाम जगहों को फत्ह करेंगे।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि जिन इलाक़ों का ऊपर वर्मन किया गया है वह इलाके अइम्मा (अ. स.) के ज़माने में आज कल के इलाकों से कहीं ज़्यादा बड़े थे। मिसाल के तौर पर रोम, यूरोप और आमरीका पर आधारित था, और चीन से अभिप्रायः पूरबी ऐशिया था, जिसमें जापान भी शामिल था जैसे कि हिन्दुस्तान पाकिस्तान को भी शामिल होता था।
क़ुसतुन्तुनिया शहर वही इस्तंबूल है जिसको उस ज़माने में ताक़तवर शहर के नाम से जाना जाता था। अगर उस शहर को फत्ह कर लिया जाता था तो एक बहुत बड़ी कामयाबी मानी जाती थी क्यों कि यूरोप जाने वाले रास्तों में से एक यही रास्ता था।
खुलासा यह है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के दुनिया के महत्वपूर्ण और हस्सास इलाकों पर मुसल्लत होने से इस बात की पुष्टी होती है कि उनकी हुकूमत पूरी दुनिया पर होगी।
स- पहले और दूसरे हिस्से की रिवायतों के अलावा बहुत सी ऐसी रिवायतें मौजूद हैं जिनमें हज़रत इमाम ज़माना (अ. स.) की पूरी दुनिया पर हुकूमत होने की व्याख्या की गई है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने फरमाया :
मैं अपने दीन को उन बारह इमामों के ज़रिये तमाम धर्मों पर ग़ालिब करुँगा और उन्हीं के ज़रिये अपने हुक्म को सब पर लागू करूँगा और उनमें से आखरी इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम के ज़रिये पूरी दुनिया को अपने दुशमनों से पाक करूँगा और उसको पूरब व पश्चिम पर हाकिम बना दूंगा।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया : ”اَلقَائِمُ مِنَّا۔۔۔ یَبْلُغُ سُلْطَانَہُ المَشْرِقَ وَ الْمَغْرِبَ وَ یَظْہَرُ اللهُ عَزَّ وَ جلّ بہ دِینہُ علی الدِّینِ کلہ وَ لو کرہَ المُشْرِکونَ “
क़ाइम आले मुहम्मद (स.) वह हैं जो दुनिया पूरब व पश्चिम पर हुकूमत करेंगे और ख़ुदा वन्दे आलम अपने दीन को उनके ज़रिये दुनिया के तमाम धर्मों पर ग़ालिब करेगा चाहे मुशरिकों को यह बात बुरी लगे।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की विश्वव्यापी हुकूमत का केन्द्र ऐतिहासिक शहर कूफ़ा रहेगा जो उस ज़माने में बहुत विस्तृत हो जायेगा और उसमें वह नजफे अशरफ शहर भी शामिल हो जायेगा जो अब कुछ किलो मीटर के फासले पर है। इसी वजह से कुछ रिवायतों में कूफ़ा और कुछ रिवायतों में नजफे अशरफ को हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत का केन्द्र बताया गया है।
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने एक लंबी रिवायत के अन्तर्गत फरमाया :
महदी (अ. स.) की हुकूमत का केन्द्र कूफ़ा शहर होगा और कूफ़े की मस्जिद में ही फैसले होंगे।
उल्लेखनीय है कि पुराने ज़माने से ही कूफ़ा शहर पर अहलेबैत (अ. स.) की ख़ास तवज्जह रही है और यही शहर हज़रत अली (अ. स.) की हुकूमत का भी केन्द्र रहा है। कूफ़े की मस्जिदे इस्लामी दुनिया की मशहूर मस्जिदों में से एक है और उस में हज़रत अली (अ. स.) ने नमाज़ पढी है और खुत्बे बयान फरमाये हैं। वह उसी मस्जिद में बैठ कर लोगों के फैसले किया करते थे और आखिर में उसी मस्जिद की मेहराब में शहीद हुए हैं।
हुकूमत की मुद्दत
जब इंसानियत एक लंबे समय तक ज़ुल्म व सितम की हुकूमत को बर्दाशत कर लेगी तो ख़ुदा वन्दे आलम की आखरी हुज्जत के ज़हूर से पूरी दुनिया न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत के स्वागत के लिए आगे बढ़ेगी। वह हुकूमत नेक और सच्चे लोगों के हाथों में होगी और यह ख़ुदा का वादा है।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की छत्र छाया में नेक और सच्चे लोगों की उस हुकूमत का शुभारम्भ होगा और दुनिया के समापन तक यह हुकूमत बाकी रहेगी और फिर कभी भी ज़ुल्म और ज़ालिमों का ज़माना नहीं आयेगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से एक रिवायत में नक्ल हुआ है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने उस आखरी मासूम की हुकूमत की खुश ख़बरी अपने रसूल (स.) को दी है इस के आखिर में फरमाया :
जब इमाम महदी (अ. स.) हुकूमत की गाग डोर अपने हाथों में संभाल लेंगे तो उनकी हुकूमत का सिसिला जारी रहेगा फिर मैं क़ियाम तक ज़मीन की हुकूमत को अपने वलियों और मुहिब्बों के हाथों में देता रहूंगा...।
इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़रिये न्याय पर आधारित हुकूमत की स्थापना के बाद कोई दूसरा हुकूमत नहीं कर सकेगा। हक़ीक़त तो यह है इंसानी जीवन के लिए एक नया इतिहास शुरु हो जायेगा जो हुकूमते इलाही की छत्र छाया में लिखा जायेगा।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :
हमारी हुकूमत आखरी हुकूमत होगी और कोई भी हुकूमत करने वाला खानदान ऐसा बाकी नहीं बचेगा जो हमारी हुकूमत से पहले हुकूमत न कर ले ताकि जब हमारी हुकूमत स्थापित हो तो उसके निज़ाम, व्यवस्था और तौर तरीके को देख कर यह न कहे कि अगर हम भी हुकूमत करते तो इसी तरह अमल करते।
इस लिए ज़हूर के बाद इलाही हुकूमत की मुद्दत हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत से अलग है। रिवायत के अनुसार वह अपनी बाक़ी उम्र में हाकिम रहेंगे और आखिर कार इस दुनिया से रुखसत हो जायेंगे।
इस बात में कोई शक नहीं है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत का ज़माना इतना लंबा होगा, जिस में इतना बड़ा विश्वव्यापी इन्क़ेलाब आना और दुनिया के हर कोने में न्याय व समानता की स्थापित होना संभव हो। लेकिन यह कहना कि यह मक़सद कुछ वर्षों में पूरा हो सकता है तो ऐसा सिर्फ गुमान और अन्दाज़े के आधार पर है। इस लिए इस बारे में भी अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) की रिवायतों को देखने की ज़रूरत है। अलबत्ता इस इलाही रहबर की लियाक़त, उनके व उनके असहाब के लिए ग़ैबी इमदाद, ज़हूर के ज़माने में विश्व स्तर पर दीन की मर्यादाओं व नेकियों को क़बूल करने की तैयारी के मद्दे नज़र संभव है कि इमाम महदी (अ. स.) की यह ज़िम्मेदारी कम मुद्दत में पूरी हो जाये और जिस इंकेलाब को बर्पा करने के लिए इंसानियत शताब्दियों से असमर्थ हो वह 10 साल से कम की समय सीमा में ही सफल हो जाये।
जिन रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के ज़माने को बयान किया गया है उनमें बहुत ज़्यादा इख़्तेलाफ़ पाया हैं। उन में से कुछ रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की मुद्दत 5 साल, कुछ में 7 साल, कुछ में 8 साल, कुछ में 10 साल वर्णन हुई है। कुछ रिवायतों में इस हुकूमत की मुद्दत 19 साल व कुछ महीने और कुछ रिवायतों में 40 और 309 साल का भी वर्णन हुआ हैं।
क्योंकि रिवायतों के इख्तेलाफ़ की वजह मालूम नहीं है इस लिए इन रिवायतों के बीच से उनकी हुकूमत की सही मुद्दत का पता लगाना एक मुशकिल काम है। लेकिन कुछ शिया आलिमों ने कुछ रिवायतों की शोहरत के आधार पर 7 साल वाले नज़रिये को चुना है।
जब कि कुछ लोगो ने यह भी कहा है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत 7 साल होगी लेकिन उसका एक साल हमारे दस साल के बराबर होगा जैसे कि कुछ रिवायतों में इल तरह का वर्णन भी हुआ है कि
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) से रावी ने हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की मुद्दत के बारे में सवाल किया तो इमाम (अ.स.) ने फरमाया :
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) सात साल हुकूमत करेंगे जो तुम्हारे 70 साल के बराबर होंगे।
मरहूम मजलिसी फरमाते हैं कि
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के बारे में बयान होने वाली रिवायतों में निम्न लिखित एहतेमाल देने चाहिए
कुछ रिवायतों में हुकूमत की पूरी मुद्दत की तरफ़ इशारा हुआ है।
कुछ रिवायतों में हुकूमत के स्थापित होने व उसकी मज़बूती की तरफ़ इशारा हुआ है।
कुछ रिवायतों में हमारे ज़माने के साल और दिनों के अनुसार इशारा हुआ है।
और कुछ रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़माने की बात हुई है जबकि ख़ुदा वन्दे आलम हक़ीक़त को ज़्यादा जानता है।
इमाम (अ. स.) की प्रशासनिक की शैली
हर हाकिम अपनी हुकूमत और उसके विभिन्न विभागों में एक ख़ास शैली को अपनाता है और वह उसकी हुकूमत की एक विशेषता होती है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) भी जब पूरी दुनिया की हुकूमत की बाग डोर अपने हाथों में संभाल लेंगे तो उस विश्वव्यापी हुकूमत को एक खास शैली से कन्ट्रोल किया जायेगा। लेकिन इस विषय की महत्ता के मद्दे नज़र उचित है कि उनकी कार्य शैली की तरफ़ इशारा किया जाये और हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के तौर तरीक़ों से संबंधित पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) की हदीसों को पेश किया जाये।
इस बात को स्पष्ट करते हुए कि रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की शैली के बारे में एक साफ़ तस्वीर पेश की गई है और वह यह है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की शैली वही पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की शैली होगी। जिस तरह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपने ज़माने में तमाम पहलुओं में जाहिलियत का मुकाबला किया और उस माहौल में उस वास्तविक इस्लाम को लागू किया कि जो इंसान की दुनिया व आख़ेरत की कामयाबी का ज़ामिन है, हज़रत इमाम महदी (अ. स.) भी ज़हूर के बाद उसी तरह उस ज़माने की नई जाहिलियत से मुक़ाबला करेंगे। जबकि उस ज़माने की जाहिलियत पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने की जाहिलियत से भिन्न और ज़्यादा दर्दनाक होगी। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) आधुनिक जाहिलियत के विरानों पर इस्लामी मर्यादाओं की नई इमारत तामीर करेंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) से सवाल हुआ कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का हुकूमती अंदाज़ क्या होगाः तो इमाम (अ. स.) ने फरमाया :
”یَصْنَعُ کَمَا صَنَعَ رَسُولُ ا للهِ (ص) یَہْدِمُ مَا کَانَ قَبْلَہُ کَمَا ہَدَمَ رَسُولُ اللهِ (ص) اٴمْرَ الجَاہِلِیَةِ وَ یَسْتَانِفُ الاِسْلاٰمَ جَدِیْداً “
इमाम महदी (अ. स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की तरह काम करेंगे और जिस तरह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने लोगों की बीच प्रचलित जाहिलियत के रीती रिवाजों को खत्म किया था उसी तरह वह भी अपने ज़हूर से पहले मौजूद जाहिलियत के रीति रिवाजों को ख़त्म करेंगे और इस्लाम की नये तरीके से बुनियाद रखेंगे।
यह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के ज़माने की मुख्य सियासत रहेगी परन्तु विभिन्न प्रस्थितियों की आवश्यक्तानुसार हुकूमत के कुछ कार्यों में परिवर्तन संभव है। इस चीज़ को रिवायतों में भी बयान किया गया है और हम इसके बारे में बाद में उल्लेख करेंगे।
जिहाद की कार्य शैली
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) अपने विश्वव्यापी इन्केलाब के द्वारा ज़मीन से कुफ्र व शिर्क के ख़त्म कर देंगे और सभी को मुकद्दस दीन इस्लाम की तरफ़ बुला लेंगे।
इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का तरीका मेरा तरीका होगा और वह लोगों को मेरी शरीअत व मेरे इस्लाम की तरफ़ ले आयेगे।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के मौके पर हक़ स्पष्ट हो जायेगा और इस तरह दुनिया वालों पर हुज्जत तमाम हो जायेगी।
कुछ रिवायतों के अनुसार हज़रत इमाम महदी (अ. स.) उस मौके पर तौरैत व इंजील की असली प्रतिलीपियाँ इन्ताकिया की गा़र से बाहर निकालेंगे और उन्हीं से यहूदियों और ईसाईयों के सामने दलीलें पेश करेंगे इसके बाद लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या मुसलमान हो जायेगी।
उस मौके पर जो चीज़ विभिन्न क़ौमो के लोगों के इस्लाम की तरफ़ आने का कारण बनेगी, वह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के पास मौजूद विभिन्न नबियों (अ. स.) की निशानियाँ होंगी जैसे जनाबे मूसा (अ. स.) का असा, जनाबे सुलेमान (अ. स.) की अंगूठी और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का अलम, तलवार और ज़िरह (कवच)।
क्योंकि वह नबियों (अ. स.) के उद्देश्यों को पूरा करने और विश्व स्तर पर न्याय स्थापित करने के लिए क़ियाम करेंगे, जाहिर है कि जब हक़ व हकीकत स्पष्ट हो जायेगी, तो सिर्फ ऐसे ही लोग बातिल के मोर्चे पर बाकी रहेंगे जो अपनी इंसानी और इलाही मर्यादाओं को बिल्कुल भुला बैठे होंगे। वह ऐसे लोग होंगे जिनका काम सिर्फ बुराई फैलाना और ज़ुल्म व सितम करना होगा। अतः हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत का ऐसे लोगों से पाक होना ज़रुरी है, इसी लिए उस मौके पर महदवी न्याय की चमकदार तलवार नियाम से बाहर निकलेगी और पूरी ताकत के साथ हठ धर्म व ज़ालिम लोगों पर चलेगी और उसकी मार से कोई भी ज़ालिम नहीं बच सकेगा। यही तरीका पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अमीरुल मोमिनीन (अ. स.) का भी था।
इमाम (अ. स.) के फ़ैसले
चूँकि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) को पूरी दुनिया में न्याय व समानता फैलाने के लिए चुना गया है, इस लिए उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए एक मज़बूत न्याय पालिका की ज़रुरत है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) इस बारे में अपने पूर्वज हज़रत अली (अ. स.) के तरीके पर काम करेंगे और जिन लोगों के अधिकार ज़ालिमों ने छीन लिए हैं वह उन्हें अपनी पूरी ताक़त से वापस लेंगे और उन्हें उनके मालिकों पहुँचायेंगे।
वह न्याय व इंसाफ़ का ऐसा प्रदर्शन करेंगे कि उसे देख ज़िन्दा लोग यह तमन्ना करेंगे कि ऐ काश मुर्दा लोग भी ज़िन्दा हो जाते और इमाम (अ. स.) के इन्साफ़ से लाभान्वित होते।
उल्लेखनीय है कि कुछ रिवायतें इस बात की पुष्टी करती है कि इमाम (अ. स.) एक न्यायधीश के रूप में हज़रत सुलेमान (अ. स.) और हज़रत दाऊद (अ. स.) की तरह काम करेंगे और अल्लाह के इल्म के सहारे उन्हीं की तरह फैसले करेंगे न कि दलील और गवाहों की गवाही के आधार पर।
इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :
जब हमारे क़ाइम क़ियाम करेंगे तो वह जनाबे दाऊद और सुलेमान की तरह फैसले करेंगे यानी गवाह तलब नहीं करेंगे।
शायद इस तरह के फैसलों का राज़ यह हो कि अल्लाह द्वारा प्रदान किये हुए इल्म पर एतेमाद करते हुए सच्ची अदालत स्थापित होगी, जबकि अगर गवाहों की बातों पर भरोसा किया जाये तो ज़ाहिरी अदालत ही होती है। क्यों अगर इंसान गवाह हों तो उन में गलती का एहसास पाया जाता है।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के इस तरीक़े से फासले करने के राज़ को समझना एक मुशकिल काम है लेकिन इतना तो समझ में आ ही सकता है कि उस ज़माने के लिए यह तरीका ही उचित है।
इमाम (अ. स.) का हुकूमत का अंदाज़
हुकूमत का एक महत्वपूर्ण स्तंभ उसके अधिकारी व कर्मचारी होते हैं, जिस हुकूमत में योग्य कर्मचारी होते है उस हुकूमत की व्यवस्था सही व सुचारू रूप से चलती है और हुकूमत अपने उद्देश्यों में कामयाब हो जाती है।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) अपनी विश्वव्यापी हुकूमत के हेड के रूप में दुनिया के विभिन्न स्थानों में व्यस्था के सुचूरू रखने के लिए अपने मददगारों में से योग्य लोगों का अधिकारियों व कर्मचारियों के रूप चयन करेंगे। यह अधिकारी वह लोग होंगे जिनके अन्दर इस्लामी हाकिम की तमाम विशेषताएं पाई जाती होंगी, जैसे मनेजमैंट की योग्या, वादा वफ़ाई, नियत व काम की सच्चाई, इरादों की मज़बूती, बहादुरी आदि इस तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) हुकूमत के प्रधान की हैसियत से पूरी दुनिया में फैले अपने मातहत अधिकारियों पर लगातार नज़र रखेंगे और चश्म पोशी के बग़ैर उनके कामों की छान बीन करेंगे, जबकि इस महत्वपूर्ण विशेषता को हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत से पहले सारी हुकूमतें भुलाए बैठी हैं। और इस बात को रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की निशानियों में गिना गया है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमायाः
عَلَامَةُ الْمَہْدِی اَنْ یَکُونَ شَدِیْداً عَلَی الْعُمَّالِ جَوَاداً باِلْمَالِ رَحِیْماً بِالْمَسَاکِیْنِ“
इमाम महदी (अ. स.) की निशानी यह है कि वह अपने ओहदेदारों के साथ सख्त होंगे और ग़रीबों के साथ बहुत ज़्यादा करम से पेश आयेंगे।
इमाम (अ. स.) की आर्थिक शैली
हुकूमत के आर्थिक मामलों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) समानता और बराबरी का क़ानून लागू करेंगे। यह वही शैली होगी जो ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में लागू थी लेकिन उनके बाद होने वाले शासकों ने, जो कि नाम मात्र मुसलमान थे, इस शैली को बदल दिया और इस की जगह पर कुछ ग़लत शैलियों व तरीक़ों को अपनाया। नतीजा यह हुआ कि कुछ लोगों को बेहिसाब माल व दौलत दे दी गई जिसकी वजह से इस्लामी समाज ग़रीब व अमीर दो तबक़ों में बंट गया और उनमें लगातार दूरी बढ़ती गई। बस हज़रत अली (अ. स.) और हज़रत इमाम हसन (अ. स.) अपनी ख़िलाफ़त के ज़माने में बैतुल माल (राजकीय कोष) को समान व बराबर बांटने के पाबन्द रहे। लेकिन उनसे पहले बनी उमैया ने मुसलमानों के बैतुल माल को व्यक्तिगत माल के रूप में अपनी मर्ज़ी से अपने रिशतेदारों और दोस्तों में बांटा कर अपनी ग़ैर क़ानूनी हुकूमत को मज़बूत बनाया। उन्होंने खेती की ज़मीनें व बैतुल माल की अन्य संपत्तियाँ अपने रिशतेदारों को भेंट कर दी और यह काम बनी उमैया के ज़माने में विशेष रूप से तीसरे खलीफ़ा के दौर में इतना प्रचलित हुआ कि इसने साधारण रूप धारण कर लिया।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) जो कि न्याय व समानता के प्रतीक हैं, वह बैतुल माल को सार्वजिन संपत्ती घोषित करेंगे और उसमें सभी को बराबर का हिस्सेदार बनायेंगे। किसी को किसी पर वरीयता नही दी जायेगी और माल व दौलत और ज़मीन की बख़्शिश बिल्कुल बन्द कर दी जायेगी।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमायाः
”اِذَا قَامَ قَائِمُنَا اضْمَحَلَّت القَطَائِعُ فَلَا قَطَائِع
जिस वक़्त हमारा क़ाइम क़ियाम करेगा क़ता-ए .का सिलसिला नहीं होगा और उसके बाद से यह सिलसिला बिल्कुल बन्द हो जायेगा।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की आर्थिक शैली यह होगी कि वह तमाम लोगों को उनकी ज़रुरतों के अनुसार उनके सुख चैन व आराम के लिए माल व दौलत बख्शा करेंगे और उनकी हुकूमत में जो ज़रुरतमंद इंसान उनसे कुछ माँगा करेगा वह उसको बहुत ज़्यादा दिया करेंगे।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
”>فَہُوَ یَحْثُوا المَالَ حَثْواً
इमाम महदी (अ. स.) बहुत ज़्यादा माल बख़्शा करेंगे।
यह तरीक़ा व्यक्तिगत और सामाजिक आधार पर सुधार का रास्ता हमवार करने के लिए अपनाया जायेगा और यही अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) का मक़सद है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का लोगों की भौतिक आवश्यक्ताओं को पूरा करने का मक़सद यह होगा कि उनके लिए ख़ुदा वन्दे आलम की इबादत और इताअत का रास्ता हमवार हो जाये। हम इस बारे में हुकूमत के उद्देश्यों वाले अध्याय में विस्तारपूर्वक उल्लेख कर चुके हैं।
इमाम (अ. स.) की ख़ुद की सीरत
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का व्यक्तिगत व्यवहार और लोगों के साथ उनके संबंध इस्लामी अधिकारियों व हाकिमों के लिए नमूना है। इमाम (अ.स.) की नज़र में हुकूमत लोगों की ख़िदमत और इन्सानियत को कमाल की आख़िरी हद तक पहुँचाने का साधन है, माल व दौलत जमा करने और लोगों पर ज़ुल्म व सितम ढाने और ख़ुदा के बन्दों से नाजायज़ फायदा उठाने का साधन नहीं है।
वास्तव में जब वह नेक लोगों का इमाम तख्ते हुकूमत पर होगा तो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अमीरुल मोमेनीन (अ. स.) की हुकूमत की याद ताज़ा हो जायेगी। जबकि उनके पास बहुत धन व दौलत होगी लेकिन उनकी अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी बहुत साधारण होगी और वह कम चीज़ो पर गुज़र बसर करेंगे।
हज़रत इमाम अली (अ. स.) उनकी तारीफ़ में फरमाते हैं कि
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) पूरे इंसानी समाज के रहबर और हाकिम होंगे लेकिन वह यह प्रतिज्ञा करेंगे कि अपनी रिआया की तरह रास्ता चलें, उन्हीं की तरह कपड़े पहनें और उन्हीं की सवारी की तरह सवारी करें और कम पर ही गुज़ारा करें।
हज़रत अली (अ. स.) ख़ुद भी इसी तरह रहते थे और उनकी ज़िन्दगी, खुराक व लिबास में नबियों की तरह ज़ोह्द पाया जाता था। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) इस बारे में भी उन्हीं का अनुसरण करेंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
”اِنَّ قَائِمَنَا اِذَا قَامَ لَبِسَ لِبَاسَ عَلِیّ وَ سَارَ بِسِیْرَتِہِ
जब हमारा क़ाइम ज़हूर करेगा तो वह हज़रत अली (अ. स.) की तरह लिबास पहनेंगे और उन्हीं की कार्य शैली को अपनायेंगे।
वह अपने लिए तो सख्त रवैये को चुनेंगे, लेकिन उम्मत के साथ एक मेहरबान बाप की तरह पेश आयेंगे और उनके आराम के बारे में सोचेंगे। हज़रत इमाम रिज़ा (अ. स.) उनकी तारीफ़ में फरमाये हैं कि
”اَلامِامُ الاَنِیْسُ الرَّفِیْقِ وَالوَالِدُ الشَفِیْق وَ الاٴخُ الشَقِیْق وَ الاٴُمُّ البِرَّةِ بِالوَلَدِ الصََّغِیْر مَفْزِغُ العِبَادِ فِی الدَّاہِیةِ النّٰاد ِ
वह इमाम हमदर्द दोस्त, मेहरबान बाप और सच्चे भाई की तरह होंगें, (वह अपनी रिआया के प्रति) उस माँ की तरह होंगे जो छोटे बच्चे पर मेहरबान होती है, इसी तरह वह ख़तरनाक घटनाओं में बन्दों के लिए पनाहगाह होंगे।
जी हाँ ! वह अपने नाना की उम्मत के इतने करीब और इतने हमदर्द होंगे कि सभी उनको अपनी पनाहगाह मानेंगे।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत है कि उन्होंने हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के बारे में फरमाया :
उम्मत उनकी पनाह में इस तरह जायेगी, जिस तरह शहद की मक्खियाँ अपनी मल्का की पनाह में रहती हैं।
वह एक सच्चे रहबर और नमूना होंगे, उनको लोगों के बीच से चुना गया है और वह उनके बीच उन्हीं की तरह ज़िन्दगी बसर करेंगे। इसी वजह से उनकी मुशकिलों को अच्छी तरह जानते हैं और उनकी परेशानियों के इलाज को भी जानते हैं और वह उनकी कामयाबी व विकास के लिए हर तरह से कोशिश करेंगे। वह इस बारे में सिर्फ़ अल्लाह की मर्ज़ी को नज़र में रखेंगे। इन सबके होते हुए उम्मत को उनके पास आराम और शांति व सुरक्षा क्यों नही मिलेगी और वह उनको छोड़ कर किसी ग़ैर से क्यों मुहब्बत करेंगे ?
आम मक़बूलियत
हुकूमत के लिए सबसे बड़ी परेशानी आम लोगों की नाराज़गी है। चूँकि हुकूमत के विभिन्न विभागों में बहुत सी कमज़ोरियां पाई जाती हैं, अतः उनके आधार पर जनता हुकूमत से नाराज़ रहती है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की एक आधारभूत विशेषता यह है कि हर इंसान और हर समाज उनकी हुकूमत को क़बूल करेगा और उससे राज़ी रहेगा। सिर्फ ज़मीन वाले ही नहीं बल्कि आसमान वाले भी उस इलाही हुकूमत और उसके न्याय प्रियः हाकिम से पूर्ण रूप से राज़ी होंगे।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
मैं तुम्हें महदी (अ. स.) की ख़ुश ख़बरी सुनाता हूँ, उनकी हुकूमत से ज़मीन व आसमान वाले राज़ी होंगे, यह कैसे संभव है कि कोई इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत से नाराज़ हो जबकि पूरी दुनिया पर यह रौशन हो जायेगा कि इमाम महदी (अ. स.) की इलाही हुकूमत की छत्र छाया में इंसान के तमाम कामों में सुधार होगा और समस्त भौतिक व आध्यात्मिक पहलुओं में कामयाबी मिलेगी।
हम उचित समझते हैं कि इस हिस्से के आखिर में हज़रत अली (अ. स.) के हमेशा अमर रहने वाले प्रवचनों का समापन के रूप में उल्लेख करें।
ख़ुदा वन्दे आलम अपने फरिशतों के ज़रिये उनका (इमाम महदी अ. स.) समर्थन करेगा। उनके मददगारों को हिफाज़त से रखेगा और अपनी निशानियों के ज़रिये उनकी मदद करेगा। वह उनको ज़मीन वालों पर इस तरह ग़ालिब बनायेगा कि तमाम लोग अपनी मर्ज़ी से या शौक से या मजबूर होकर उनके पास इकठ्ठा हो जायेंगे। वह ज़मीन को न्याय, समानता, नूर और दलील से भर देंगे। हर शहर के लोग उन पर ईमान ले आयेंगे यहाँ तक कि कोई काफिर बाक़ी नहीं बचेगा। कोई ऐसा बुराई नहीं बचेगी जो अच्छाई में न बदल जाये। उनकी हुकूमत के ज़माने में दरिन्दें आपस में मेल जोल से रहेंगे और ज़मीन अपनी बरकतों को बाहर इकाल देगी( फ़सल ज़्यादा पैदा होगी) और आसमान अपने खैर को नाज़िल करेगा( आवश्यक्ता के अनुसार पानी बरसायेगा) और इमाम के लिए ज़मीन में छिपे खज़ाने ज़ाहिर हो जायेंगे। अतः खुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में मौजूद हो और उन की इताअत (आज्ञा पालन) करे।