चूँकि इस संसार की रचना का उद्देश्य, इंसान को कमाल तक पहुँचाना और सब कमालों के मालिक ख़ुदा वन्दे आलम से ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब करना है, इस लिए इस महान इच्छा को प्राप्त करने के लिए उसके ज़रूरी साधनों का उपलब्ध कराना भी बहुत आवश्यक है। अतः हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की उस विश्वव्यापी हुकूमत का मक़सद इंसान को अल्लाह के क़रीब पहुँचने के साधन उपलब्ध कराना और इस रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करना है।
क्योंकि इंसान शरीर व आत्मा से मिल कर बना है इस लिए उसकी ज़रुरतें भी भौतिक व आध्यात्मिक दो हिस्सों में विभाजित हैं। अतः कमाल तक पहुँचने के लिए ज़रुरी है कि दोनों पहलुओं को नज़र में रख कर आगे क़दम बढ़ाया जाये। चूँकि इलाही हुकूमत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अदालत व न्याय पर आधारित होती है, इस लिए उसके अन्तर्गत इंसान भौतिक व आध्यात्मिक दोनों लिहाज़ से तरक्की की मंज़िलें बड़ी आसानी से तय कर सकता है।
इस आधार पर हमारे बारहवें इमाम हज़रत महदी (अ. स.) की हुकूमत भी समाज की आध्यात्मिक तरक़्क़ी और न्याय व समानता को स्थापित करने और उसे फैलाने के लिहाज़ से वर्णन योग्य है।
आध्यात्मिक तरक़्क़ी
उपरोक्त वर्णित दोनों उद्देश्यों की महत्ता व वास्तविक्ता को समझने के लिए ज़रूरी है कि हम पहले तागूत और ज़ालिम बादशाहों की हुकूमत के दौर में इंसानी ज़िन्दगी के इतिहास की थोड़ी सी छान बीन करें।
अब तक के मानवता के इतिहास में (अल्लाह की हुज्जत की हुकूमत को छोड़ कर) आध्यात्मिक्ता व आध्यात्मिक मर्यादाओं का क्या महत्व रहा है ? क्या इसके अलावा कुछ और है कि यह भटकी हुी मानवता हमेशा बुराइयों के रास्ते पर चलती रही है और अपनी इच्छाओं व शैतानी वसवसों का अनुसरण करने के कारण अपने हर गुण व अच्छाई को भुला बैठी है और उसने अपनी श्रेष्ठताओं को ख़ुद अपने ही हाथों से शहवतों व इच्छाओं के क़ब्रिस्तान में दफन कर दिया है ?! पाकीज़गी, पवित्रता, सच्चाई, आपसी सहयोग व मदद, त्याग व दान और नेकी व एहसान की जगह लोलुप्ता, कामुकता, झूट, धोके बाज़ी, स्वार्थता, विश्वासघात, ज़ुल्म, अत्याचार और ज़्यादा की हवस ने ले ली है। इन सबको अगर हम एक वाक्य में कहना चाहें तो इस तरह कह सकते हैं कि इंसानी ज़िन्दगी में आध्यात्मिक्ता दम तोड़ती जा रही है, बल्कि कुछ स्थानों पर तो बहुत से नाम मात्र के इंसानों के अन्दर आध्यात्मिक्ता के असर भी खत्म हो चुके हैं।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत इंसान के वजूद व अस्तित्व में ऐसी ही चीज़ को ज़िन्दा करने के लिए क़दम उठायेगी और मुर्दा इंसान को एक नया जीवन प्रदान करने की कोशिश करेगी, ताकि जिस इंसानियत को फ़रिश्तों ने सजदा किया था उसे सच्ची ज़िन्दगी का मिठास चखाये और सबको यह याद दिलाये कि शुरु से ही तक़दीर यह थी कि तुम ऐसे ज़माने में ज़िन्दगी बसर करोगे और पाक़ीज़गी, पवित्रता और नेकियों के इतर की खुशबू अपनी रुह में पाओगे।
یَااٴَیُّہَا الَّذِینَ آمَنُوا اسْتَجِیبُوا لِلَّہِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاکُمْ لِمَا یُحْیِیکُمْ۔۔۔>
ऐ ईमान लाने वालों ! अल्लाह और रसूल की आवाज़ पर आगे बढ़ो, जब वह तुम्हें उस काम की तरफ़ बुलायें जिसमें तुम्हारी ज़िन्दगी है।
अतः यह आध्यात्मिक जीवन जिसकी वजह से इंसान पशुओं से अलग होता है, यही इंसान का असली वजूद और महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्यों कि आदमी को इसी ज़िन्दगी की वजह से इंसान कहा जाता है और यही ज़िन्दगी इंसान को ख़ुदा वन्दे आलम से नज़दीक करती है।
इसी वजह से हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत में इंसान का यह पहलू उजागर होगा और ज़िन्दगी के तमाम पहलुओं में इंसानी मर्यादाओं की धूम होगी मेल, जोल, प्यार, मोहब्बत, त्याग, वफ़ादारी, सच्चाी और हर उस चीज़ का बोल बाला होगा जो अच्छाी और नेकी के क्षेत्र में आती है।
जबकि इस महान और पवित्र मक़सद तक पहुँचने के लिए एक विशाल योजना की ज़रुरत है और उसके बारे में आगे चर्चा करेंगे।
न्याय का विस्तार
हर इंसानी समाज में ज़ुल्म व सितम सब से बड़ा ज़ख्म रहा है, इंसानियत हमेशा विभिन्न मसलों में अपने अधिकारों तक पहुँचने से वंचित रही है। इंसानी समाज में कभी भी में भौतिक और आध्यात्मिक नेमतें न्याय व समानता के आधार पर विभाजित नहीं हुई हैं। मालदार लोगों के साथ एक गिरोह हमेशा ही भूका रहा है। बड़े बड़े महलों के आस पास हमेशा ही कुछ लोग रास्तों और फुटपाथ पर ज़िन्दगी बसर करते रहे हैं। धन व दौलत की ताक़त ने सदैव गरीब और कमज़ोर लोगों को गुलामी की ज़न्जीर में जकड़ा है। गोरों ने कालों पर (सिर्फ काले होने के जुर्म में) ज़ुल्म व सितम किये हैं। अगर इन सब बातों को एक वाक्य में कहा जाये तो इस तरह कहा जा सकता है कि हमेशा और हर जगह ग़रीब व कमज़ोर लोगों के अधिकार, ताकतवरों और मक्कारों के द्वारा पैरों तले कुचले जाते रहे हैं। जबकि इंसान के दिल में हमेशा यह तमन्ना रही है कि एक दिन ऐसा आये कि समाज में न्याय व समानता का बोल बाला हो। अतः इंसान हमेशा से ही न्याय पर आधारित हुकूमत के इन्तेज़ार में है।
इस इन्तेज़ार की आखरी हद हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत का ज़माना है, और वह सब से बड़े आदिल और इंसाफ़ करने वाले हादी के रूप में पूरी दुनिया में न्याय व समानता स्थापित करेंगे। अतः इसी सच्चाई की ख़ुश ख़बरी बहुत सी रिवायतों में सुनाई गई है।
हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) ने फरमाया :
अगर दुनिया का एक दिन भी बाक़ी रह जाये तो ख़ुदा वन्दे आलम उस दिन को इतना लंबा कर देगा कि मेरी नस्ल से एक इंसान क़ियाम करेगा और ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से वैसे ही भर देगा जैसे वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी, और यह बात मैं ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से सुनी है।
इस के अलावा अनेको रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत में विश्व स्तर पर न्याय व समानता स्थापित होने और ज़ुल्म व सितम के मिटने की ख़ुश खबरी दी गई है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि न्याय व समानता हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की सबसे उच्च विशेषता है और इसी वजह से उन्हें कुछ दुआओं में उनके इसी लक़ब से याद किया गया है।
”اَللھم وَ صل علی ولی امرک القائم المومل و العدلِ المنتظر“
ऐ अल्लाह ! दुरुद व सलाम हो तेरे वली पर जो सब इन्तेज़ार करने वालों की तमन्ना और न्याय स्थापित करने वाले है।
जी हाँ! वह न्याय व समानता को अपने इंकेलाब का आधार बनायेंगे, क्योंकि न्याय व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में वास्तविक जिन्दगी के रास्ते को हमवार करता है। न्याय के बग़ैर ज़मीन और उस पर जीवन व्यतीत करने वाले ऐसे मुर्दा और बे रुह हैं जिनको ज़िन्दा शुमार किया जाता है।
हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम (अ. स.) ने निम्न लिखित आयत की तफ्सीर के बारे में में फ़रमाया है कि
< اعْلَمُوا اٴَنَّ اللهَ یُحْیِ الْاٴَرْضَ بَعْدَ مَوْتِہَا ۔۔۔>
याद रखो कि अल्लाह मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा करने वाला है।
मक़सद यह नहीं है कि अल्लाह ज़मीन को बारीश के द्वारा ज़िन्दा करता है, बल्कि ख़ुदा वन्दे आलम कुछ ऐसे मर्दों को तैयार करेगा जो अदालत को ज़िन्दा करेंगे, अतः समाज में न्याय व समानता के स्थापित होने से ज़मीन ज़िन्दा हो जायेगी।
ज़मीन का ज़िन्दा होना इस बात की तरफ़ इशारा है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का न्याय आम न्याय होगा जो हर जगह स्थापित होगा, यह कुछ ख़ास इलाकों और कुछ ख़ास लोगों से संबंधित नही होगा।।